भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........

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मार्च 31, 2012

पानी की धार




"स्त्री का प्रेम पानी की धार है, जिस ओर ढाल पाता है उधर ही बह जाता है । सोना ज़्यादा गरम होकर पिघल जाता है ।"


- मुँशी प्रेमचंद  


मार्च 12, 2012

अहित



"मानव - चरित्र कितना रहस्यमय है ? हम दूसरों का अहित करते हुए ज़रा भी नहीं हिचकते, किन्तु जब दूसरों के हाथों हमें कोई हानि पहुँचती है, तो हमारा खून खौलने लगता है ।"

- मुँशी प्रेमचंद