भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........

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मार्च 12, 2012

अहित



"मानव - चरित्र कितना रहस्यमय है ? हम दूसरों का अहित करते हुए ज़रा भी नहीं हिचकते, किन्तु जब दूसरों के हाथों हमें कोई हानि पहुँचती है, तो हमारा खून खौलने लगता है ।"

- मुँशी प्रेमचंद 

13 टिप्‍पणियां:

  1. क्यों कि हम दूसरों को अपना नहीं समझते, क्योंकि हम दूसरों से खुद को अलग मानते हैं, तभी तो संत कहते हैं जैसा व्यवहार तुम खुद के लिये नहीं चाहते वैसा दूसरों के साथ न करो...

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    1. बेनामीमार्च 13, 2012

      बिलकुल सही कहा अनीता जी आपने।

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  2. बहुत ही चुनिन्दा पंक्तियाँ लाते हैं आप.... एक एक पंक्ति जीवन के रहस्य की कई परतें खोल देती है .

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  3. इमरान भाई
    मैं एक बार अपने पिता जी की dairy पढ़ रहा था उन्हों ने लिख रखा था कि
    ईश्वर ने मनुष्य को बतौर गुण या दुर्गुण इकलौती चीज सिर्फ स्वार्थ ही दी है

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    1. बेनामीमार्च 13, 2012

      काफी हद तक बात बिकुल सही है ये अच्छा या बुरा हर किसी चीज़ में निहित स्वार्थ होता है ।

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  4. बेनामीमार्च 13, 2012

    शुक्रिया आप सभी लोगों का ।

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  5. सुन्दर प्रस्तुति.....बहुत बहुत बधाई...

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  6. सच कहा है ... १०० फी सदी सच पात ...

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  7. Please either remove the pic or give due credit to the photographer. Free riding is not a good thing. http://www.flickr.com/photos/tuhinsubhradey/4259674886/in/set-72157629237740167

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    1. बेनामीजुलाई 04, 2012

      sorry dear.....i am just try to serach anger in google the google displayed this image so i download it....i was write in my blog to thanks for google.....i am realy sorry .....next time i will thank to artist.

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