भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........

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अक्तूबर 05, 2010

आत्मीयता


"दूसरों की बुराइयों की हमें परवाह नहीं होती, अपनों ही को बुरी राह चलते देखकर दंड दिया जाता है| मगर अपनों को दंड देते समय इसका तो ध्यान रखना चाहिए की आत्मीयता का सूत्र टूटने न पाए|"
                                                         - मुँशी प्रेमचंद 

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत गहरी और सुंदर बात...... शायद बच्चो के साथ काफी हद तक लागू होती है......

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  2. सही है, आत्मीयता की कीमत पर किया सुधार अंत में दोनों के लिये दुखदायक सिद्ध हो सकता है.

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...