भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........

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मई 21, 2011

अपनों का प्रेम


"आदमी को जीवन क्यों प्यारा होता है? इसलिए नहीं कि वह सुख भोगता है, जो सदा दुःख भोगा करते हैं और रोटियों को तरसते हैं, उन्हें जीवन कम प्यारा नहीं होता|

हमें जीवन इसलिए प्यारा होता है कि हमें अपनों का प्रेम और दूसरों का आदर मिलता है | जब इन दो में से एक के मिलने कि भी आशा नहीं , तो जीवन व्यर्थ है |"
                                                          
                                                                    - मुँशी प्रेमचंद 


10 टिप्‍पणियां:

  1. सच्ची सरल अच्छी बात...कोई समझे तो...
    नीरज

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  2. सचमुच जिन्दा रहने के लिये आदमी को सबसे ज्यादा जरूरत है प्रेम की, लेकिन आज छोटी उम्र के कालेज के विद्यार्थी भी आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे हैं क्या मातापिता के प्रेम पर उन्हें भरोसा नहीं रह गया ?

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  3. बेनामीमई 23, 2011

    @ अनीता जी.....मुझे लगता है कई बार माता-पिता ही उन पर अपनी आकाँक्षाओं का बोझ लाद देते हैं |

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  4. "जीवन इसलिए प्यारा होता है कि हमें अपनों का प्रेम और दूसरों का आदर मिलता है"

    सही उक्ति है !!
    लेकिन कभी-कभी.....

    प्यारे से ही प्यार है
    और प्यार संसार !
    खुद से भी कर लीजिये
    बस थोड़ा सा प्यार !!

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  5. जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...
    achha kahavat hai
    http://shayaridays.blogspot.com

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  6. munshi ji ki baaten jitni saral hotii hain utni hi gahrii bhi.badhiya chunaw!!

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...