भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........

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मार्च 31, 2012

पानी की धार




"स्त्री का प्रेम पानी की धार है, जिस ओर ढाल पाता है उधर ही बह जाता है । सोना ज़्यादा गरम होकर पिघल जाता है ।"


- मुँशी प्रेमचंद  


7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें
    प्रस्तुति पर ||

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  2. धार का ढाल की ओर बहना भले सहज हो,किंतु स्त्री के लिए एक ख़तरा यह है कि वह चिकनी-चुपड़ी बातें करने वालों के चंगुल में फंस सकती है।

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  3. प्रेम स्त्री का सहज स्वभाव है वह सहज है इसलिए ही पानी की धार की तरह है...और वह सहज है इसलिए स्वर्ण की तरह है, प्रेम को अलग कर दें तो स्त्री स्त्री नहीं रहती....सुंदर विचार !

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  4. बहुत सुन्दर , बहुत बधाई
    कृपया मेरे ब्लोग पर भी आप जैसे गुणीजनो का मर्गदर्शन प्रार्थनीय है

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...