भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........

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अक्तूबर 23, 2010

सत्य सेवा



"जहाँ रूप, यौवन, संपत्ति और प्रभुता प्रेम का बीज बोने में असफल रहते हैं वहाँ अक्सर उपकार का जादू चल जाता है| कोई ह्रदय ऐसा वज्र और कठोर नहीं, जो सत्य सेवा से द्रवीभूत न हो जाये|"
                                                                                   
                                                                  - मुँशी प्रेमचंद 

4 टिप्‍पणियां:

  1. bilkul sahi.aap ye tippadiyan premchand ji ki kis kriti se lete hain iska ullekh bhi kiya karen.

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  2. बिल्कुल सही ..... ऐसा इस दुनिया में कई महान हस्तियों ने किया भी है.....बहुत सुंदर विचार

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  3. सत्य सेवा का भाव भीतर जग जाना ही तो अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है , सचमुच इसका जादू सर चढ़ कर बोलेगा.

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  4. मानवता की पहली शर्त और पहला धर्म भी यही है . पर............... . पुनः याद दिलाने के लिए बधाई ......

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...