भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........

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मार्च 05, 2013

भावना



"प्रेम एक भावनागत विषय है, भावना ही से उसका पोषण होता है, भावना ही से लुप्त हो जाता है । प्रेम भौतिक वस्तु नहीं है ।"

- मुँशी प्रेमचंद 




मई 25, 2012

क्षणभंगुर


"जीवन से ज़्यादा आसार भी दुनिया में कोई वस्तु है, क्या वह उस दीये की तरह क्षणभंगुर नहीं, जो हवा के एक झोंके से बुझ जाता है।"

                                                            - मुँशी प्रेमचंद 


अप्रैल 21, 2012

आग और पानी



युवावस्था आवेशमय होती है, क्रोध से आग हो जाती है, करुणा से पानी हो जाती है|

- मुँशी प्रेमचंद 

मार्च 31, 2012

पानी की धार




"स्त्री का प्रेम पानी की धार है, जिस ओर ढाल पाता है उधर ही बह जाता है । सोना ज़्यादा गरम होकर पिघल जाता है ।"


- मुँशी प्रेमचंद  


मार्च 12, 2012

अहित



"मानव - चरित्र कितना रहस्यमय है ? हम दूसरों का अहित करते हुए ज़रा भी नहीं हिचकते, किन्तु जब दूसरों के हाथों हमें कोई हानि पहुँचती है, तो हमारा खून खौलने लगता है ।"

- मुँशी प्रेमचंद