भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........

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अक्तूबर 23, 2010

सत्य सेवा



"जहाँ रूप, यौवन, संपत्ति और प्रभुता प्रेम का बीज बोने में असफल रहते हैं वहाँ अक्सर उपकार का जादू चल जाता है| कोई ह्रदय ऐसा वज्र और कठोर नहीं, जो सत्य सेवा से द्रवीभूत न हो जाये|"
                                                                                   
                                                                  - मुँशी प्रेमचंद 

अक्तूबर 13, 2010

क्रोध


"क्रोध अत्यंत कठोर होता है, वह मौन को सहन नहीं कर सकता | 
उसकी शक्ति अपार है ऐसा कोई घातक से घातक शस्त्र नहीं है, 
जिससे बढकर काट करने वाले यंत्र उसकी शस्त्रशाला में न हों; 
लेकिन मौन वह मन्त्र है, जिसके आगे उसकी सारी शक्ति विफल हो जाती है|
मौन उसके लिए अजेय है|"
           
                - मुँशी प्रेमचंद 

अक्तूबर 05, 2010

आत्मीयता


"दूसरों की बुराइयों की हमें परवाह नहीं होती, अपनों ही को बुरी राह चलते देखकर दंड दिया जाता है| मगर अपनों को दंड देते समय इसका तो ध्यान रखना चाहिए की आत्मीयता का सूत्र टूटने न पाए|"
                                                         - मुँशी प्रेमचंद