1920 ई. का एक चित्र भारत में छुआछुत को दर्शाता (गूगल से साभार) |
"मन और कर्म की शुद्धता ही धर्म का मूल तत्व है | वही ऊँचा है, जिसका मन शुद्ध है ; वही नीचा है, जिसका मन अशुद्ध है | जिसने वर्ण का स्वांग रचकर समाज के एक अंग को मदांध और दूसरे को मलेच्छ नहीं बनाया | किसी के लिए उन्नति या उद्धार का द्वार बंद नहीं किया | एक के माथे पर बड़प्पन का तिलक और दूसरे के माथे पर नीचता का कलंक नहीं लगाया |"
- मुँशी प्रेमचंद