भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........

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जनवरी 28, 2012

शुद्ध - अशुद्ध

1920 ई. का एक चित्र भारत में
छुआछुत को दर्शाता (गूगल से साभार)

"मन और कर्म की शुद्धता ही धर्म का मूल तत्व है | वही ऊँचा है, जिसका मन शुद्ध है ; वही नीचा है, जिसका मन अशुद्ध है | जिसने वर्ण का स्वांग रचकर समाज के एक अंग को मदांध और दूसरे को मलेच्छ नहीं बनाया | किसी के लिए उन्नति या उद्धार का द्वार बंद नहीं किया | एक के माथे पर बड़प्पन का तिलक और दूसरे के माथे पर नीचता का कलंक नहीं लगाया |"

- मुँशी प्रेमचंद 



जनवरी 12, 2012

तृष्णा



"बुढापा तृष्णा रोग का अंतिम समय है, जब सम्पूर्ण इच्छायें एक ही केंद्र पर आ जाती हैं |"


- मुँशी प्रेमचंद