भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........

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जनवरी 29, 2011

धन का देवता



"धन का देवता आत्मा का बलिदान लिए बिना प्रसन्न नहीं होता|"

- मुँशी प्रेमचंद 

जनवरी 19, 2011

घास और कास


"घास और कास स्वयं उगते हैं, उखाड़ने से भी नहीं उखड़ते| अच्छे पौधे बड़ी देख - रेख में उगते हैं| इसी प्रकार बुरे समाचार स्वयं फैलते हैं, छुपाने से भी नहीं छुपते|"
                                                                           
                                                                                    - मुँशी प्रेमचंद 

जनवरी 07, 2011

हार - जीत

"हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश विधि के हाथ है, हम तो खाली मैदान में खेलने के लिए बनाये गए हैं| सभी खिलाड़ी मन लगाकर खेलते हैं ; सभी चाहते हैं की हमारी जीत हो| 

लेकिन जीत एक ही की होती है , तो क्या इससे हारने वाले हिम्मत हार जाते हैं? वह फिर खेलते हैं, फिर हार जाते हैं, तो फिर खेलते हैं| कभी  न कभी तो उनकी जीत होती ही है| "
                                                                                             
                                                                                    - मुँशी प्रेमचंद