भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........
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Bilkul....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मोनिका जी ।
हटाएंयुवावस्था में जोश तो बहुत होता है होश की जरा कमी होती है..इसलिए थोड़ी सी बात पर आग हो जाती है, कोई समझा दे तो भीतर पश्चाताप भी होता है और हृदय द्रवित हो जाता है..इसलिए युवाओं को बुजुर्गों की कद्र करनी चाहिए.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनीता जी.....बुजुर्गों से ही तो हम सब कुछ सीखते हैं ।
हटाएंsatya vachan
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मोनिका जी
जवाब देंहटाएंअनुपम प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंवाह: बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका।
हटाएंइसीलिए,बच्चन ने माना कि युग का जुआ युवाओं के कंधों पर ही होता है।
जवाब देंहटाएंयह पंक्ति पढ़ते ही पूरा "गोदान" आँखों के सामने से गुजर गया |
जवाब देंहटाएंकिसी ने सच ही कहा है कि "अगर किसी ने मुंशी प्रेमचंद को नही पढ़ा तो वह भारत को नही जान सकता "
मेरा ब्लॉग आपके इंतजार में,समय मिलें तो बस एक झलक-
"मन के कोने से..."
आभार...