भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........

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मई 21, 2011

अपनों का प्रेम


"आदमी को जीवन क्यों प्यारा होता है? इसलिए नहीं कि वह सुख भोगता है, जो सदा दुःख भोगा करते हैं और रोटियों को तरसते हैं, उन्हें जीवन कम प्यारा नहीं होता|

हमें जीवन इसलिए प्यारा होता है कि हमें अपनों का प्रेम और दूसरों का आदर मिलता है | जब इन दो में से एक के मिलने कि भी आशा नहीं , तो जीवन व्यर्थ है |"
                                                          
                                                                    - मुँशी प्रेमचंद 


मई 05, 2011

ज्वालाशिखर


"स्त्री का क्रोध पुरुष से कहीं घटक, कहीं विध्वंसकारी होता है | क्रोधोन्मत हो कर वह कोमलांगी सुंदरी, ज्वालाशिखर बन जाती है |"


                                                       - मुँशी प्रेमचंद