भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........
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दिसंबर 29, 2011
दिसंबर 12, 2011
नवंबर 29, 2011
घर
"घर", कितनी कोमल , पवित्र, मनोहर स्मृतियों को जाग्रत कर देता है| यह प्रेम का निवास-स्थान है | प्रेम ने बहुत तपस्या करके यह वरदान पाया है | यही वह लहर है, जो मानव जीवन को स्थिर रखता है, उसे समुद्र की वेगवती लहरों में बहने और चट्टानों से टकराने से बचाता है | यही वह मंडप है, जो जीवन को समस्त विध्न - बाधाओं से सुरक्षित रखता है |
- मुँशी प्रेमचंद नवंबर 15, 2011
अक्तूबर 29, 2011
अक्तूबर 12, 2011
सितंबर 20, 2011
सितंबर 06, 2011
त्याग
त्याग दो प्रकार के होते हैं | एक वह; जो त्याग में आनंद मानते हैं, जिनकी आत्मा को त्याग में संतोष और पूर्णता का अनुभव होता है, जिनके त्याग में उदारता और सौजन्य है |
दूसरे वह; जो दिलजले त्यागी होते हैं, जिनका त्याग अपनी परिस्तिथियों से विद्रोह मात्र है, जो अपने न्यायपथ पर चलने का तावान संसार से लेते हैं, जो खुद जलते हैं इसलिए दूसरों को भी जलाते हैं |
- मुँशी प्रेमचंद
दूसरे वह; जो दिलजले त्यागी होते हैं, जिनका त्याग अपनी परिस्तिथियों से विद्रोह मात्र है, जो अपने न्यायपथ पर चलने का तावान संसार से लेते हैं, जो खुद जलते हैं इसलिए दूसरों को भी जलाते हैं |
- मुँशी प्रेमचंद
अगस्त 17, 2011
अगस्त 01, 2011
ज्योति
"यह कितना घोर अन्याय है की हम सब इक ही पिता की संतान होते हुए भी , एक-दूसरे से घ्रणा करें, ऊँच-नीच की व्यवस्था में मगन रहें| यह सारा जगत उसी परमपिता का विराट रूप है| प्रत्येक जीव में उसी परमात्मा की ज्योति आलोकित हो रही है| केवल इसी भौतिक परदे ने हमें एक - दूसरे से अलग कर दिया है| यतार्थ में हम सब एक हैं|
जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश अलग-अलग घरों में जाकर भिन्न नहीं हो जाता, उसी प्रकार ईश्वर की महान आत्मा अलग-अलग जीवों में प्रविष्ट होकर भी विभिन्न नहीं होती|"
- मुँशी प्रेमचंद
जुलाई 16, 2011
मानव ह्रदय
"मानव ह्रदय एक रहस्यमय वस्तु है, कभी तो वह लाखों की ओर आँख उठाकर नहीं देखता और कभी कौड़ियों पर फिसल जाता है|"
- मुँशी प्रेमचंद
जून 27, 2011
जून 09, 2011
मई 21, 2011
अपनों का प्रेम
"आदमी को जीवन क्यों प्यारा होता है? इसलिए नहीं कि वह सुख भोगता है, जो सदा दुःख भोगा करते हैं और रोटियों को तरसते हैं, उन्हें जीवन कम प्यारा नहीं होता|
हमें जीवन इसलिए प्यारा होता है कि हमें अपनों का प्रेम और दूसरों का आदर मिलता है | जब इन दो में से एक के मिलने कि भी आशा नहीं , तो जीवन व्यर्थ है |"
- मुँशी प्रेमचंद
मई 05, 2011
अप्रैल 19, 2011
अप्रैल 05, 2011
मार्च 25, 2011
मार्च 04, 2011
फ़रवरी 14, 2011
जनवरी 29, 2011
जनवरी 19, 2011
जनवरी 07, 2011
हार - जीत
"हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश विधि के हाथ है, हम तो खाली मैदान में खेलने के लिए बनाये गए हैं| सभी खिलाड़ी मन लगाकर खेलते हैं ; सभी चाहते हैं की हमारी जीत हो|
लेकिन जीत एक ही की होती है , तो क्या इससे हारने वाले हिम्मत हार जाते हैं? वह फिर खेलते हैं, फिर हार जाते हैं, तो फिर खेलते हैं| कभी न कभी तो उनकी जीत होती ही है| "
- मुँशी प्रेमचंद
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