भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........

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नवंबर 26, 2010

जवानी......जवानी का जोश



"जवानी जोश है, बल है, दया है, साहस है, आत्मविश्वास है, गौरव है और वह सब कुछ जो जीवन को पवित्र, उज्जवल और पूर्ण बना देता है|"


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"जवानी का जोश घमण्ड है, निर्दयता है, स्वार्थ है, शोखी है, विषय-वासना है, कटुता है और वह सब कुछ है जो जीवन को पशुता, विकार और पतन की और ले जाता है|"


                                                                                        - मुँशी प्रेमचंद 

नवंबर 19, 2010

क्षमा


"क्षमा बदले के भय से नहीं माँगी जाती| भय से आदमी छिप जाता है, दूसरों की मदद माँगने दौड़ता है, क्षमा नहीं माँगता| क्षमा आदमी उसी वक़्त माँगता है, जब उसे अपने अन्याय और बुराई का विश्वास हो जाता है और जब उसकी आत्मा उसे लज्जित करती है|"


                                                                 - मुँशी प्रेमचंद  

नवंबर 08, 2010

दरिद्र और दुर्बल


"संसार में दरिद्र और दुर्बल होना पाप है| इसकी सज़ा से कोई नहीं बच सकता| बाज़ कबूतर पर कभी दया नहीं करता|"
                                                                                 -  मुँशी प्रेमचंद 

नवंबर 01, 2010

व्यंग्य


"आग चाहें फूस को न जला सके, काँच चाहे पत्थर की चोट से न टूट सके पर व्यंग्य विरले ही कभी ह्रदय को प्रज्ज्वलित करने, उसमे चुभने और उसे चोट पहुँचाने में असफल होता है|"
                                                                  
                                                                                      - मुँशी प्रेमचंद