भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........

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अगस्त 17, 2011

न्याय


"न्याय करना उतना कठिन नहीं है, जितना की अन्याय का सामना करना"
                                                         
                    - मुँशी प्रेमचंद 

अगस्त 01, 2011

ज्योति


"यह कितना घोर अन्याय है की हम सब इक ही पिता की संतान होते हुए भी , एक-दूसरे से घ्रणा करें, ऊँच-नीच की व्यवस्था में मगन रहें| यह सारा जगत उसी परमपिता का विराट रूप है| प्रत्येक जीव में उसी परमात्मा की ज्योति आलोकित हो रही है| केवल इसी भौतिक परदे ने हमें एक - दूसरे से अलग कर दिया है| यतार्थ में हम सब एक हैं|


जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश अलग-अलग घरों में जाकर भिन्न नहीं हो जाता, उसी प्रकार ईश्वर की महान आत्मा अलग-अलग जीवों में प्रविष्ट होकर भी विभिन्न नहीं होती|"
                                                                           - मुँशी प्रेमचंद