भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........

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जून 27, 2011

अन्याय


"न्याय क्या है और अन्याय क्या है, यह सिखाना नहीं पढ़ता | बच्चे को भी बेकसूर सज़ा दो , तो वह चुपचाप न सहेगा|"
                                                      - मुँशी प्रेमचंद 


जून 09, 2011

सुभार्या


"सुभार्या (गुणवती पत्नी), स्वर्ग की सबसे बड़ी विभूति है, जो मनुष्य के चरित्र को उज्जवल और पूर्ण बना देती है|  जो आत्मोन्नति का मूल मंत्र है |"


                                                                      - मुँशी प्रेमचंद