भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........
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सच है.... इसीलिए हर हाल में हौसला बना रहे.....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंachha sandesh.............
जवाब देंहटाएंआशा से निराशा ही अच्छी है तब तो... आशक्ति का अर्थ क्या है कहीं यह अशक्ति तो नहीं है ? मेरा सवाल था अजल का अर्थ, उर्दू के कठिन शब्द समझने में मुश्किल है.. आपके जज्बात की हम कद्र करते हैं, हमें नामों से ऊपर उठना ही होगा !
जवाब देंहटाएंइमरान जी , कहीं कुछ विरोधाभास सा है , आशा जड़ की ओर ले जाती है और निराशा चैतन्य की ओर ..फिर सफलता में सजीवता कैसे हुई .? निराशा तो गड्ढे में धकेलती है ..हाँ अगर वो चुभन प्रेरित करे तो सार्थक है और चैतन्य भी ....सफ़र के सजदे में ..ब्लॉग पर एक गीत में मैनें लिखा था ...
जवाब देंहटाएंएक किरण आशा की सपने हजार लाती है
डूबें हों कितने भी पल में उबार लाती है
...निराशा तो मौत है चैतन्यता है ही नहीं ....निराशा किस कदर मिटा देती है ...देखो .
खुरदरे सफ़र ने मिटा दिए 'गर ,लेकिन '
चिकनी सतह पर नहीं टिकता कुछ भी
यानि हम हार जीत की दुनिया से भी दूर चले आये हैं
....
आशा में डूबा हुआ व्यक्ति एक कल्पना में रह रहा होता है जबकि निराशा उसका वास्तविकता से परिचय कराती है, आशावान भ्रम में ही रहे चला जाता है निराशा का एक झटका उसे सचेत कर देता है, आशा सपने दिखाती है और चैतन्य सपनों से जागकर ही मिलता है निराशा के दुःख का स्वाद लिये बिना कोई जड़ता से मुक्त कैसे हो सकता है ? जड़ता से मुक्त हुए बिना सफलता कैसी और वही सफलता सजीव होगी जो सचेत होकर मिले !
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