"आदमी को जीवन क्यों प्यारा होता है? इसलिए नहीं कि वह सुख भोगता है, जो सदा दुःख भोगा करते हैं और रोटियों को तरसते हैं, उन्हें जीवन कम प्यारा नहीं होता|
हमें जीवन इसलिए प्यारा होता है कि हमें अपनों का प्रेम और दूसरों का आदर मिलता है | जब इन दो में से एक के मिलने कि भी आशा नहीं , तो जीवन व्यर्थ है |"
- मुँशी प्रेमचंद
bahut sunder baat.
जवाब देंहटाएंसच्ची सरल अच्छी बात...कोई समझे तो...
जवाब देंहटाएंनीरज
सचमुच जिन्दा रहने के लिये आदमी को सबसे ज्यादा जरूरत है प्रेम की, लेकिन आज छोटी उम्र के कालेज के विद्यार्थी भी आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे हैं क्या मातापिता के प्रेम पर उन्हें भरोसा नहीं रह गया ?
जवाब देंहटाएंvery nice ...
जवाब देंहटाएंकितनी गहरी बात है.....
जवाब देंहटाएं@ अनीता जी.....मुझे लगता है कई बार माता-पिता ही उन पर अपनी आकाँक्षाओं का बोझ लाद देते हैं |
जवाब देंहटाएं"जीवन इसलिए प्यारा होता है कि हमें अपनों का प्रेम और दूसरों का आदर मिलता है"
जवाब देंहटाएंसही उक्ति है !!
लेकिन कभी-कभी.....
प्यारे से ही प्यार है
और प्यार संसार !
खुद से भी कर लीजिये
बस थोड़ा सा प्यार !!
जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...
जवाब देंहटाएंachha kahavat hai
http://shayaridays.blogspot.com
sach kaha ..pyaar me kitni taakat hai .
जवाब देंहटाएंmunshi ji ki baaten jitni saral hotii hain utni hi gahrii bhi.badhiya chunaw!!
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