"यह कितना घोर अन्याय है की हम सब इक ही पिता की संतान होते हुए भी , एक-दूसरे से घ्रणा करें, ऊँच-नीच की व्यवस्था में मगन रहें| यह सारा जगत उसी परमपिता का विराट रूप है| प्रत्येक जीव में उसी परमात्मा की ज्योति आलोकित हो रही है| केवल इसी भौतिक परदे ने हमें एक - दूसरे से अलग कर दिया है| यतार्थ में हम सब एक हैं|
जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश अलग-अलग घरों में जाकर भिन्न नहीं हो जाता, उसी प्रकार ईश्वर की महान आत्मा अलग-अलग जीवों में प्रविष्ट होकर भी विभिन्न नहीं होती|"
- मुँशी प्रेमचंद
प्रेमचंदजी ने कितना बड़ा सत्य व्यक्त किया है भेद केवल ऊपर ऊपर से है और कितना सुंदर है पर भीतर सभी एक हैं इंसान यह बात भूल गया है और व्यर्थ ही दुःख पा रहा है...
जवाब देंहटाएंमुंशीजी के विचारों को पढ़ने का मौका देने के लिए धन्यवाद आपका .....
जवाब देंहटाएंKya kamal kee baaten kah Munshiji!
जवाब देंहटाएंबस यही तो नहीं समझते हम ...
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