त्याग दो प्रकार के होते हैं | एक वह; जो त्याग में आनंद मानते हैं, जिनकी आत्मा को त्याग में संतोष और पूर्णता का अनुभव होता है, जिनके त्याग में उदारता और सौजन्य है |
दूसरे वह; जो दिलजले त्यागी होते हैं, जिनका त्याग अपनी परिस्तिथियों से विद्रोह मात्र है, जो अपने न्यायपथ पर चलने का तावान संसार से लेते हैं, जो खुद जलते हैं इसलिए दूसरों को भी जलाते हैं |
- मुँशी प्रेमचंद
दूसरे वह; जो दिलजले त्यागी होते हैं, जिनका त्याग अपनी परिस्तिथियों से विद्रोह मात्र है, जो अपने न्यायपथ पर चलने का तावान संसार से लेते हैं, जो खुद जलते हैं इसलिए दूसरों को भी जलाते हैं |
- मुँशी प्रेमचंद
sateek baat hai .aabhar sarthak prastuti hetu .
जवाब देंहटाएंBHARTIY NARI
Aur ek anmol moti!
जवाब देंहटाएंगहन...
जवाब देंहटाएंप्रथम प्रकार के व्यक्तियों का त्याग भीतर परम शांति को भर जाता है...वे बहुत सभ हृदय के मालिक होते हैं, और दसरे प्रकार के त्यागी भीतर तनाव के सिवा और कुछ नहीं पाते क्योंकि उनका साध्य मात्र तात्कालिक परिस्थितियों से छुटकारा पाना था वे दुर्बल होते हैं..
जवाब देंहटाएंप्रेमचन्द जैसे लेखक दूध का दूध पानी का पानी करने में समर्थ हैं.
मुंशीजी के कथन को पढ़ने का अवसर दिया इसके लिए आपका धन्यवाद ...
जवाब देंहटाएंसार्थक अंतर बताया आपने।
जवाब देंहटाएंत्याग की गरिमा इसमें है कि त्यागी को उसका एहसास न हो। अन्यथा,प्राप्त भी जाता रहता है।
जवाब देंहटाएंSach kaha ...ek tyag vairagy hai aur ek tyag nairashy...
जवाब देंहटाएंसत्य कहा आपने व्यक्ति परिचय के पीछे कहीं न कहीं हम सब इनमे से एक वर्ग के प्राणी है ....
जवाब देंहटाएंचिंतान्परख लेख....बधाई आपको
बहुत सकह कहा है।
जवाब देंहटाएंअनमोल के साथ अनुपम भी।
जवाब देंहटाएं