भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........

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जनवरी 19, 2011

घास और कास


"घास और कास स्वयं उगते हैं, उखाड़ने से भी नहीं उखड़ते| अच्छे पौधे बड़ी देख - रेख में उगते हैं| इसी प्रकार बुरे समाचार स्वयं फैलते हैं, छुपाने से भी नहीं छुपते|"
                                                                           
                                                                                    - मुँशी प्रेमचंद 

5 टिप्‍पणियां:

  1. ...और अच्छे समाचार सुनाने से भी नहीं सुने जाते, उन्हें सुनाने के लिये बड़ी मेहनत करनी पड़ती है...

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  2. सच कहा , वो जिस तेजी से बढ़ते हैं , अच्छा हो कि बीज पनपने ही न दिया जाए , वरना तगड़ी मेहनत करनी पड़ती है ..वीडिंग के लिए

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  3. बहुत सुन्दर एवं सार गर्भित बात !!! शुक्रिया आपका !!इमरान जी

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...