भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........

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मई 05, 2011

ज्वालाशिखर


"स्त्री का क्रोध पुरुष से कहीं घटक, कहीं विध्वंसकारी होता है | क्रोधोन्मत हो कर वह कोमलांगी सुंदरी, ज्वालाशिखर बन जाती है |"


                                                       - मुँशी प्रेमचंद 

5 टिप्‍पणियां:

  1. Pata nahee....purush bhee utnaahee widhwanskaaree ho saktaa hai!

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  2. किसी ने कहा है क्रोध क्षणिक पागलपन है, कोई भी करे, क्रोध में व्यक्ति यह भी भूल जाता है कि वह कौन है, कहाँ है..इस पर किसी का एकाधिकार नहीं है.. हा.हा.हा..

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  3. sayad isshe behtar shrandhjali kuch aur ho nhi sakti hai... thank u very much.. itne sare naye aur khubsurat link apne padne ko diye...

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  4. इमरान जी....
    पहली बार इस "कलम के सिपाही" से मुलाक़ात हुई..!
    मुलाक़ात क्या ?एक यादगार सफ़र तय किया दुबारा,हमने एक साथ !!
    "प्रेमचंद जी" को ऐसे भी उद्धत किया जा सकता है...
    यह किसी "कलम के सिपाही'' का ही काम हो सकता है....!!
    आपको सलाम....!!!

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...