"घर", कितनी कोमल , पवित्र, मनोहर स्मृतियों को जाग्रत कर देता है| यह प्रेम का निवास-स्थान है | प्रेम ने बहुत तपस्या करके यह वरदान पाया है | यही वह लहर है, जो मानव जीवन को स्थिर रखता है, उसे समुद्र की वेगवती लहरों में बहने और चट्टानों से टकराने से बचाता है | यही वह मंडप है, जो जीवन को समस्त विध्न - बाधाओं से सुरक्षित रखता है |
- मुँशी प्रेमचंद
भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........
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नवंबर 29, 2011
नवंबर 15, 2011
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