"घर", कितनी कोमल , पवित्र, मनोहर स्मृतियों को जाग्रत कर देता है| यह प्रेम का निवास-स्थान है | प्रेम ने बहुत तपस्या करके यह वरदान पाया है | यही वह लहर है, जो मानव जीवन को स्थिर रखता है, उसे समुद्र की वेगवती लहरों में बहने और चट्टानों से टकराने से बचाता है | यही वह मंडप है, जो जीवन को समस्त विध्न - बाधाओं से सुरक्षित रखता है |
- मुँशी प्रेमचंद
भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........
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बहुत ही सुन्दर विचार हैं ..
जवाब देंहटाएंEk aur anmol moti!
जवाब देंहटाएंSach me...
जवाब देंहटाएंये तेरा घर ये मेरा घर ये घर बहुत हसीन है .....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बात ....
सचमुच घर आकर हमें जो सुकून मिलता है वह और कहीं नहीं मिलता !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति !
bhaut hi khubsurat....
जवाब देंहटाएं'घर' के लिये प्रेमचन्द ने यूँही इतने सुंदर शब्दों का प्रयोग नहीं किया है, चाहे हम सारी दुनिया घूमते रहें पर घर लौट कर ही चैन आता है, ऐसे ही हमारा मन दुनिया भर का चक्कर लगाता है पर घर का उसे पता ही नहीं सारा जीवन बेचारा मन भटकता ही रहता है...प्रेमचन्द आत्मा के घर की ओर भी इशारा कर रहे हैं...
जवाब देंहटाएं@ आपकी बात सही है अनीता जी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंऐसी अनमोल बातें आप हम सब के साथ साझा करते है इसके लिए बहुत बहुत शुभकामनायें !
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