1920 ई. का एक चित्र भारत में छुआछुत को दर्शाता (गूगल से साभार) |
"मन और कर्म की शुद्धता ही धर्म का मूल तत्व है | वही ऊँचा है, जिसका मन शुद्ध है ; वही नीचा है, जिसका मन अशुद्ध है | जिसने वर्ण का स्वांग रचकर समाज के एक अंग को मदांध और दूसरे को मलेच्छ नहीं बनाया | किसी के लिए उन्नति या उद्धार का द्वार बंद नहीं किया | एक के माथे पर बड़प्पन का तिलक और दूसरे के माथे पर नीचता का कलंक नहीं लगाया |"
- मुँशी प्रेमचंद
सार्थक प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका |
हटाएंप्रेमचंद जी के बारे में कुछ कहना सूरज को दीपक दिखलाने वाली बात होगी.... !
जवाब देंहटाएंलेकिन , आई हूँ , तो कुछ तो लिख जाऊं.........
उपर वाले(god , भगवान् या अल्लाह) ने केवल इंसान बनाया ,
उन्हें शुद्ध या अशुद्ध , आपने , हमने या औरों (जिसकी लाठी उसकी भैंस) ने बनाई.... !!
शुक्रिया आपका | सहमत हूँ आपकी बातों से|
हटाएंWaqayee anmol vichar!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका |
हटाएंSach hai...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका |
हटाएंशत प्रतिशत सही बात...मन व कर्म की शुद्धता ही किसी को शुद्द या अशुद्ध बनाती है न कि जन्म...तथा कथित निम्न जाति में जन्म लेकर भी कोई कर्मों के कारण पूज्य बन सकता है.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनीता जी......मर्म को बिलकुल सही पहचाना आपने|
हटाएंसार्थक पंक्तियाँ हैं प्रेम चंद जी की ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दिगम्बर जी |
हटाएंइस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें.
हटाएंकृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" पर पधार कर मेरे प्रयास को भी अपने स्नेह से अभिसिंचित करें, आभारी होऊंगा.
सार्थक पोस्ट ..बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंAchcha prayas.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आप सभी लोगों का |
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