भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........
Click here for Myspace Layouts
अनमोल वचन ...
जवाब देंहटाएंKya gazab kee baat kahee hai!
हटाएंतृष्णा एक रोग है, बुढ़ापा इस रोग के प्रकटीकरण का अंतिम समय...सच ही है क्योंकि मूल तृष्णा जीवन की है और व्यक्ति कितना भी बूढ़ा हो जाये, मृत्यु नहीं चाहता....
जवाब देंहटाएंबुढ़ापे में भी इच्छा? तौबा-तौबा!
जवाब देंहटाएंआपके ब्लाग पर आकर ,सत्य का सामना करना पड़ता है ....वो सत्य ....जिससे अक्सर इंसान भागता है........शेयर करते रहें...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया वसुंधरा जी........सही कहा आपने.......इसी इए मैं इन ब्लॉगस को लिखता हूँ ताकि चरित्र का सही निर्माण हो सके |
हटाएंबहुत सही ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आप सभी का |
जवाब देंहटाएंआपके इस उत्कृष्ठ लेखन के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएं