भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........

Click here for Myspace Layouts

अक्टूबर 13, 2010

क्रोध


"क्रोध अत्यंत कठोर होता है, वह मौन को सहन नहीं कर सकता | 
उसकी शक्ति अपार है ऐसा कोई घातक से घातक शस्त्र नहीं है, 
जिससे बढकर काट करने वाले यंत्र उसकी शस्त्रशाला में न हों; 
लेकिन मौन वह मन्त्र है, जिसके आगे उसकी सारी शक्ति विफल हो जाती है|
मौन उसके लिए अजेय है|"
           
                - मुँशी प्रेमचंद 

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही नेक सदवचन हैं प्रेमचंद जी के उदगार प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद ..

    जवाब देंहटाएं
  2. bahut sunder..... Imran.... In arthpoorn shabdon ko sajha karne ke liye.. dhanywad

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी ये पंक्तियाँ मुझे संबल देगीं ......!!

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खूब ...फिर भी नाराज होते हो ??
    शुभकामनायें !
    http://yatraekmanki.blogspot.com/2010/10/blog-post.html

    जवाब देंहटाएं
  5. अर्थात एक चुप सौ सुख !

    जवाब देंहटाएं
  6. achchhe lekhan ki yhi sarthkta haiki vo hmesha jivnt rhe our prerna de .
    aapko sadhuwad enhe sngrheet krne ke liye .

    जवाब देंहटाएं
  7. kabhi-kabhi maun rahna bhi krodh ko badava deta hai.yaad rakhiye-ati ka bhala n bolna;ati ka bhala n chup.

    जवाब देंहटाएं

जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...