भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........

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नवंबर 01, 2010

व्यंग्य


"आग चाहें फूस को न जला सके, काँच चाहे पत्थर की चोट से न टूट सके पर व्यंग्य विरले ही कभी ह्रदय को प्रज्ज्वलित करने, उसमे चुभने और उसे चोट पहुँचाने में असफल होता है|"
                                                                  
                                                                                      - मुँशी प्रेमचंद 

5 टिप्‍पणियां:

  1. सच तभी शायद कहा जाता है की शब्दों के बाण का घाव कभी नहीं भरता....
    बहुत सुंदर

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  2. कहते हैं वाणी के घाव नहीं भरते तन के घाव भर जाते हैं, लेकिन समय सारे घावों को भर देता है .

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  3. बिल्कुल सही कहा . प्रेमचंद की अनमोल वाणी को फिर से याद दिलाने के लिए आपको धन्यवाद . जारी रखिये ..........

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  4. शब्द की शक्ति असीमित होती है , कभी जख्म पर मरह्म का काम कर जाती है तो कभी उम्र भर ना भरने वाला जख्म दे जाती है

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...