भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........
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दिसंबर 03, 2010
आग
"बाहर की आग केवल देह का नाश करती है, जो स्वयं नश्वर है, भीतर की आग अनंत आत्मा का सर्वनाश कर देती है|"
-मुँशी प्रेमचंद
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यक़ीनन .... कुछ नहीं बचता...
जवाब देंहटाएंसही कहा है, नश्वर देह तो बार बार मिल जाती है पर आत्मा से मिलन कभी होता ही नहीं, विकारों की आग में उसका कोमल गात झुलस न जाता होगा !
जवाब देंहटाएंआदरणीय इमरान अंसारी जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार
बहुत उम्दा विचार हैं आपके ...प्रेमचंद जी का अप्रतिम स्थान है , साहित्य जगत में ....आप प्रयास कर रहे हैं ,,,इसके लिए शुक्रिया
सच कहा, अन्दर की आग चाहे वह क्रोधाग्नि हो या कामाग्नि सब
जवाब देंहटाएंकुछ नष्ट कर देती है।