भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........
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सच है !
जवाब देंहटाएंSach hee to hai.
जवाब देंहटाएंबहुत सच कहा है...
जवाब देंहटाएंBilkul Sach...
जवाब देंहटाएंसच्चाई यही है ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
सचमुच इस जगत के सारे सारे नाते स्नेह के नाते हैं...स्नेह न हो तो नातों में दरार पड़ जाती है.
जवाब देंहटाएंसहमत आपकी बात से .. प्रेम जी जीवन है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति,...बढ़िया पोस्ट
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
सपने में कभी न सोचा था,जन नेता ऐसा होता है
चुन कर भेजो संसद में, कुर्सी में बैठ कर सोता है,
जनता की बदहाली का, इनको कोई ज्ञान नहीं
ये चलते फिरते मुर्दे है, इन्हें राष्ट्र का मान नहीं,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलिमे click करे
अति मनमोहक मोती - 'स्नेह', ... वाह !
जवाब देंहटाएंओशो सिद्धार्थ भी कहते हैं-
जवाब देंहटाएंकहने को कोई हमारा है
तब तक ही यह जग प्यारा है
आप सभी लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया|
जवाब देंहटाएंसही कहा....
जवाब देंहटाएंजब स्नेह ही न हो रिश्तों में तो उन्हें सिर्फ ढोया जाता है..
नाम के तौर पर..!!