भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........

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दिसंबर 12, 2011

स्नेह


"संसार के सारे नाते स्नेह के नाते हैं, जहाँ स्नेह नहीं वहाँ कुछ भी नहीं |"

- मुँशी प्रेमचंद 



12 टिप्‍पणियां:

  1. सच्चाई यही है ....
    शुभकामनायें आपको !

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  2. सचमुच इस जगत के सारे सारे नाते स्नेह के नाते हैं...स्नेह न हो तो नातों में दरार पड़ जाती है.

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  3. सहमत आपकी बात से .. प्रेम जी जीवन है ...

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  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति,...बढ़िया पोस्ट

    मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
    सपने में कभी न सोचा था,जन नेता ऐसा होता है
    चुन कर भेजो संसद में, कुर्सी में बैठ कर सोता है,
    जनता की बदहाली का, इनको कोई ज्ञान नहीं
    ये चलते फिरते मुर्दे है, इन्हें राष्ट्र का मान नहीं,

    पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलिमे click करे

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  5. अति मनमोहक मोती - 'स्नेह', ... वाह !

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  6. ओशो सिद्धार्थ भी कहते हैं-
    कहने को कोई हमारा है
    तब तक ही यह जग प्यारा है

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  7. बेनामीदिसंबर 25, 2011

    आप सभी लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया|

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  8. सही कहा....
    जब स्नेह ही न हो रिश्तों में तो उन्हें सिर्फ ढोया जाता है..
    नाम के तौर पर..!!

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...