भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........
नवंबर 19, 2010
क्षमा
"क्षमा बदले के भय से नहीं माँगी जाती| भय से आदमी छिप जाता है, दूसरों की मदद माँगने दौड़ता है, क्षमा नहीं माँगता| क्षमा आदमी उसी वक़्त माँगता है, जब उसे अपने अन्याय और बुराई का विश्वास हो जाता है और जब उसकी आत्मा उसे लज्जित करती है|"
- मुँशी प्रेमचंद
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सत्य
जवाब देंहटाएंऔर वह जो दिलों के द्वेष खत्म करना चाहता है।
समर्थ व सक्षम हो हुए भी क्षमा मांगे।
kabhee kabhee kshama mang kar masle ko rafa dafa krna badappan kee nishanee bhee hai.
जवाब देंहटाएंयानि कि वह जब बुराई के ऊपर उठ जाता है, जब वह निर्दोष होता है,सच्ची क्षमा तभी मांगी जाती है, पर आमतौर पर हम दिल से क्षमा कर नहीं पाते.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर .... हर पोस्ट एक जीवन दर्शन दे जाती है... धन्यवाद
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