भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........
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बिल्कुल सही कहा है ... ।
जवाब देंहटाएंलेकिन सहानुभूति भी वहीँ दिखाए जहाँ उसकी ज़रुरत हो
जवाब देंहटाएंऔर उसकी कद्र करने वाला हो वर्ना सब व्यर्थ जाता है...!!
वैसे प्रेमचंदजी ने अपने समय के अनुरूप सही कहा था..
I agreed.....!!
***punam***
bas yun..hi..
बहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंसहानुभूति अवश्य कारगर है..लेकिन दूसरों के हृदय का ताला खोलने से पहले खुद के दिल का ताला खोलना भी जरूरी है...वरना सहानुभूति ऊपर ऊपर से ही होगी.
जवाब देंहटाएंbahut sundar ....
जवाब देंहटाएंbahut hi accha vichar hai
जवाब देंहटाएंकभी-कभी इसी सहानुभूति द्वारा najaayaj faydaa bhii utha लिया जाता है ...
जवाब देंहटाएंरहस्यों ko जानकर .....
जरुर
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