भारत ही नहीं वरन विश्व साहित्य में मुँशी प्रेमचंद जी का एक अलग स्थान है, और बना रहेगा | शायद ही कोई ऐसा साहित्य प्रेमी होगा, जिसने मुँशी प्रेमचंद जी को न पढ़ा हो | शायद अब उनके बारे में कुछ और कहने को बचा ही नहीं है| वो एक महान साहित्यकार ही नहीं, एक महान दार्शनिक भी थे | मेरी तरफ से उस महान कलम के सिपाही को एक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित यह ब्लॉग, जिसमे मैं उनके अमूल्य साहित्य में से उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत करूँगा........

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अक्तूबर 29, 2011

सहानुभूति



"सहानुभूति वह दुर्लभ चाभी है, जिससे दूसरों के ह्रदय के अनसुलझे रहस्यों का ताला खोला जा सकता है"

- मुँशी प्रेमचंद 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्‍कुल सही कहा है ... ।

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  2. लेकिन सहानुभूति भी वहीँ दिखाए जहाँ उसकी ज़रुरत हो
    और उसकी कद्र करने वाला हो वर्ना सब व्यर्थ जाता है...!!

    वैसे प्रेमचंदजी ने अपने समय के अनुरूप सही कहा था..

    I agreed.....!!


    ***punam***
    bas yun..hi..

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  3. सहानुभूति अवश्य कारगर है..लेकिन दूसरों के हृदय का ताला खोलने से पहले खुद के दिल का ताला खोलना भी जरूरी है...वरना सहानुभूति ऊपर ऊपर से ही होगी.

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  4. कभी-कभी इसी सहानुभूति द्वारा najaayaj faydaa bhii utha लिया जाता है ...
    रहस्यों ko जानकर .....

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...